दलितों के मसीहा : बाबा रामदेव ने छुआछूत के खिलाफ कार्य कर दलित हिन्दुओं का पक्ष ही नहीं लिया बल्कि उन्होंने हिन्दू और मुस्लिमों के बीच एकता और भाईचारे को बढ़ाकर शांति से रहने की शिक्षा भी दी। बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे, लेकिन उन्होंने राजा बनकर नहीं अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरूरतमंदों की सेवा भी की। इस बीच उन्होंने विदेशी आक्रांताओं से लोहा भी लिया।
डाली बाई : बाबा रामदेव जन्म से क्षत्रिय थे लेकिन उन्होंने डाली बाई नामक एक दलित कन्या को अपने घर बहन-बेटी की तरह रखकर पालन-पोषण कर समाज को यह संदेश दिया कि कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। रामदेव बाबा को डाली बाई एक पेड़ के नीचे मिली थी। यह पेड़ मंदिर से 3 किमी दूर हाईवे के पास बताया गया है
कुछ विद्वान मानते हैं कि विक्रम संवत 1409 (1352 ईस्वी सन्) को उडूकासमीर (बाड़मेर) में बाबा का जन्म हुआ था और विक्रम संवत 1442 में उन्होंने रुणिचा में जीवित समाधि ले ली। पिता का नाम अजमालजी तंवर, माता का नाम मैणादे, पत्नी का नाम नेतलदे, गुरु का नाम बालीनाथ, घोड़े का नाम लाली रा असवार था।
जन्म कथा : एक बार अनंगपाल तीर्थयात्रा को निकलते समय पृथ्वीराज चौहान को राजकाज सौंप गए। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने उन्हें राज्य पुनः सौंपने से इंकार कर दिया। अनंगपाल और उनके समर्थक दुखी हो जैसलमेर की शिव तहसील में बस गए। इन्हीं अनंगपाल के वंशजों में अजमल और मेणादे थे। नि:संतान अजमल दंपत्ति श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक थे। एक बार कुछ किसान खेत में बीज बोने जा रहे थे कि उन्हें अजमलजी रास्ते में मिल गए। किसानों ने नि:संतान अजमल को शकुन खराब होने की बात कहकर ताना दिया। दुखी अजमलजी ने भगवान श्रीकृष्ण के दरबार में अपनी व्यथा प्रस्तुत की। भगवान श्रीकृष्ण ने इस पर उन्हें आश्वस्त किया कि वे स्वयं उनके घर अवतार लेंगे। बाबा रामदेव के रूप में जन्मे श्रीकृष्ण पालने में खेलते अवतरित हुए और अपने चमत्कारों से लोगों की आस्था का केंद्र बनते गए।
डाली बाई : बाबा रामदेव जन्म से क्षत्रिय थे लेकिन उन्होंने डाली बाई नामक एक दलित कन्या को अपने घर बहन-बेटी की तरह रखकर पालन-पोषण कर समाज को यह संदेश दिया कि कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। रामदेव बाबा को डाली बाई एक पेड़ के नीचे मिली थी। यह पेड़ मंदिर से 3 किमी दूर हाईवे के पास बताया गया है
https://www.aarth.org/forum/general-discussions/kala-jadu-specialist-tantrik-91-9694850756-in-mumbai
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https://www.aarth.org/forum/general-discussions/baba-ji-91-9694850756-love-problem-solution-in-sunam
कुछ विद्वान मानते हैं कि विक्रम संवत 1409 (1352 ईस्वी सन्) को उडूकासमीर (बाड़मेर) में बाबा का जन्म हुआ था और विक्रम संवत 1442 में उन्होंने रुणिचा में जीवित समाधि ले ली। पिता का नाम अजमालजी तंवर, माता का नाम मैणादे, पत्नी का नाम नेतलदे, गुरु का नाम बालीनाथ, घोड़े का नाम लाली रा असवार था।
जन्म कथा : एक बार अनंगपाल तीर्थयात्रा को निकलते समय पृथ्वीराज चौहान को राजकाज सौंप गए। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने उन्हें राज्य पुनः सौंपने से इंकार कर दिया। अनंगपाल और उनके समर्थक दुखी हो जैसलमेर की शिव तहसील में बस गए। इन्हीं अनंगपाल के वंशजों में अजमल और मेणादे थे। नि:संतान अजमल दंपत्ति श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक थे। एक बार कुछ किसान खेत में बीज बोने जा रहे थे कि उन्हें अजमलजी रास्ते में मिल गए। किसानों ने नि:संतान अजमल को शकुन खराब होने की बात कहकर ताना दिया। दुखी अजमलजी ने भगवान श्रीकृष्ण के दरबार में अपनी व्यथा प्रस्तुत की। भगवान श्रीकृष्ण ने इस पर उन्हें आश्वस्त किया कि वे स्वयं उनके घर अवतार लेंगे। बाबा रामदेव के रूप में जन्मे श्रीकृष्ण पालने में खेलते अवतरित हुए और अपने चमत्कारों से लोगों की आस्था का केंद्र बनते गए।
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